ADHD कोई नहीं, एक बचाव प्रणाली है
दुनिया के शीर्ष ADHD विशेषज्ञ डॉ. गाबोर माटे का कहना है कि ADHD को लेकर जो आम धारणाएं हैं, वो बिल्कुल भी सही नहीं है। डॉ. माटे केवल एक मनोवैज्ञानिक नहीं हैं — वे एक फिजीशियन हैं, जिन्होंने वैंकूवर के सबसे खतरनाक इलाकों में नशा करने वाले मरीजों का इलाज किया है।

दुनिया के शीर्ष ADHD विशेषज्ञ डॉ. गाबोर माटे का कहना है कि ADHD को लेकर जो आम धारणाएं हैं, वो बिल्कुल भी सही नहीं है। डॉ. माटे केवल एक मनोवैज्ञानिक नहीं हैं — वे एक फिजीशियन हैं, जिन्होंने वैंकूवर के सबसे खतरनाक इलाकों में नशा करने वाले मरीजों का इलाज किया है। दिलचस्प बात ये है कि उन्हें खुद 50 साल की उम्र में ADHD का निदान हुआ। इसके बाद जो उन्होंने खोजा, वो हैरान कर देने वाला था।
यहाँ जानिए ADHD से जुड़ी वो 7 असहज सच्चाइयाँ जो डॉ. गाबोर माटे उजागर कीं:
- ADHD कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक जीवित रहने की प्रणाली है। डॉ. माटे कहते हैं,
“अगर मैं आपको अभी तनाव में डाल दूँ, तो आपके पास दो विकल्प होंगे – लड़ना या भागना।” “लेकिन अगर आप ऐसा कुछ नहीं कर सकते, तो आपका दिमाग ‘ट्यून आउट‘ हो जाएगा। ये एक सामान्य प्रतिक्रिया है।” यही ध्यान भटकने की आदत आगे चलकर ADHD की तरह दिखती है। - ‘जेनेटिक‘ थ्योरी बिल्कुल गलत है कि मेडिकल संस्थान ADHD को “सबसे अनुवांशिक मानसिक बीमारी” बताते हैं। लेकिन डॉ माटे कहते हैं: “ये न तो बीमारी है और न ही जेनेटिक।” तो फिर क्या ट्रांसफर होता है? जवाब है – ट्रॉमा (emotional trauma)। अगर कोई बच्चा ऐसा माहौल देखता है जहां तनाव है, शराब है, झगड़े हैं — तो उसका दिमाग तनाव के उन्हीं पैटर्न को अपनाता है जो उसके माता-पिता में थे। ADHD के जीन्स नहीं, बल्कि वातावरण के प्रति संवेदनशीलता ही वंशानुगत होती है।
- आपका दिमाग शुरुआती तनावों से आकार लेता है ये कहना है डॉ मोटे का। डॉ. माटे उदाहरण देते हैंक वे नाजी कब्जे के दौरान पैदा हुए। उनकी मां तनाव में थीं और बच्चे को शांत नहीं कर पाईं। नतीजा? उनका दिमाग “ट्यून आउट” होना सीख गया — सिर्फ जीवित रहने के लिए।ADHD के लक्षण बहुत पहले ही शुरू हो जाते हैं — बोलने या चलने से पहले।
- आधुनिक स्कूल ADHD की फैक्ट्री हैं। “बच्चों को दिनभर फ्लोरेसेंट लाइट्स में बैठाकर एक बेजान शिक्षक को घूरने के लिए मजबूर किया जाता है।” “अगर बच्चा ‘ज़ॉम्बी‘ की तरह प्रतिक्रिया नहीं देता, तो हम उसे दवा दे देते हैं।” डॉ. माटे कहते हैं: समस्या बच्चे में नहीं, बल्कि उस माहौल में है जिसे हमने बनाया है।
- दवाएं असली समस्या को नहीं सुलझातीं क्योंकि डॉ. माटे खुद रिटालिन और डेक्सेड्रिन जैसी दवाएं लेते रहे। क्या फायदा हुआ? वो बताते हैं कि “हाँ, मैं एक और भी ज्यादा कुशल वर्कहोलिक बन गया… लेकिन मेरी भावनात्मक समस्याएं जस की तस रहीं।” नतीजा ये है कि दवा लक्षणों को शांत करती है — मूल कारणों को नहीं।
- डॉक्टर असली कारण जानने के लिए प्रशिक्षित ही नहीं होते हैं। डॉ. माटे कहते हैं:
“औसत डॉक्टर को मस्तिष्क के विकास पर एक भी लेक्चर नहीं मिलता।” ADHD का निदान अक्सर एक परिपत्र तर्क होता है: ADHD है क्योंकि ध्यान नहीं लगता। और ध्यान क्यों नहीं लगता? क्योंकि ADHD है। इससे कुछ भी स्पष्ट नहीं होता। - असली समाधान: लक्षण नहीं, पूरे परिवार का इलाज करने की जरूरत होती है। “आपके पास एक अत्यंत संवेदनशील बच्चा है जो परिवार के तनाव को सोख रहा है।” “जब माता-पिता अपने आपसी रिश्तों को ठीक करते हैं, तो बच्चा भी बदल जाता है।” ADHD का समाधान सिर्फ दवाओं में नहीं, बल्कि संबंधों और माहौल में छिपा है।
शायद कुछ लोग जानते नहीं होते कि ADHD क्या है। ADHD (Attention Deficit Hyperactivity Disorder) एक स्नायविक (neurological) और व्यवहारिक विकार है, जिसमें व्यक्ति का ध्यान लंबे समय तक किसी चीज़ पर केंद्रित नहीं रह पाता, वह अति सक्रिय (hyperactive) होता है और बिना सोचे-समझे कार्य कर बैठता है (impulsiveness)। यह समस्या अधिकतर बचपन में शुरू होती है, लेकिन इसके लक्षण व्यस्कों तक बने रह सकते हैं।
निष्कर्ष: ADHD को लेकर समाज और चिकित्सा जगत में कई भ्रांतियाँ हैं। डॉ. गाबोर माटे का यह दृष्टिकोण एक नई सोच की ओर इशारा करता है — जहाँ हम बच्चे को ‘बीमार‘ मानने की बजाय उसे समझने की कोशिश करते हैं। जब परिवार, शिक्षक और समाज मिलकर माहौल को बदलते हैं, तभी सच्चे इलाज की शुरुआत होती है।